Friday 17 June, 2011

Second Half

मेरी शादी १० दिसम्बर, २०१०  को हुई. शादी और उस वक़्त की घटनाएँ काफी अलग रहीं. उम्मीद से बेहतर शादी. हमने love marriage की है. School time की दोस्ती को प्यार और फिर शादी में बदला है हमने. मेरे दोस्तों के पास मेरी शादी attend करने का वक़्त नहीं था. बहुत बुरा लगा था उस दिन. शुरुआती उलझनों के बाद फिलहाल जिंदगी अच्छी चल रही है. शादी के बाद का वक़्त पिछले वक़्त से अच्छा है.

अब मुझे बीवी अपने हाथ से खाना खिलाती है. मैं उसे घुमाने ले जाता हूँ. उसे वक़्त से ऑफिस पहुँचाता हूँ. शाम को घर लौटने में मैंने कभी भी देरी नहीं की.  

Taken for Granted

हम अक्सर दूसरों की परेशानिया नहीं समझ पाते. तब तो बिलकुल नहीं, जब सामने वाला मितभाषी हो. हम अपनी सुविधाओं को तरजीह देते चले जाते हैं और दूसरा थककर हमसे कतराने लगता है. हम उसे मतलबी, गैरजिम्मेदार, नासमझ और न जाने क्या-क्या कह देते हैं. थोडा  ठहरकर उसके लिए सोचना, जिसे हम अजीज कहते हैं, उसकी असुविधाओं का ध्यान रखना वक़्त बर्बाद करने की तरह क्यों लगता है अक्सर?

बहुत साड़ी चीजें ऐसी ही होती हैं  जिसे हम समाज के लिए, परिवार के लिए करते रहते हैं, ये जानकर भी कि इसका हमें कुछ भी फायदा नहीं. कभी-कभी तो हम अपना ये दिखावा दूसरों पर भी थोप देते हैं, उन्हें संस्कारों की दुहाई देकर शिक्षित करने की कोशिश करते हैं. तब तो हद ही हो जाती है जब कई लोग अपना सबकुछ, अपने अजीज को भी दिखावे के लिए छोड़ने को तैयार हो जाते हैं.

Wednesday 26 May, 2010

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Thursday 20 May, 2010

Jise log Jindgi kahte hain

अब मेरे पास वक़्त नहीं होता है. मैं साढ़े छः बजे दिन की शुरुआत करता हूँ. सुबह काफी हलकी-फुल्की होती है. मेरी शादी नहीं हुई अभी. ऑफिस के लिए तैयार होता हूँ. आठ बजे कमरे का दरवाजा बंद कर निकलता हूँ. नास्ते में पराठे के लिए आधे घंटे इंतज़ार करता हूँ. उसे चिल्लर देने के लिए जूस पीता हूँ. पार्किंग तक पहुँचने के लिए ऑटो लेता हूँ. तंग गलियों से drive  करता हूँ. दोस्तों को बिठाता हुआ चलता हूँ. रेड लाइट पर पुलिस वाला पैसे मांगता है. आगे बढ़ता हूँ. अगली रेड लाइट पर भीख मांगती एक जवान लड़की शीशा खटखटाती है. महिपालपुर में जाम में आधा घंटे फंसता हूँ. देर से ऑफिस पहुँचता हूँ. परिचय पत्र दिखाकर ऑफिस एरिया में दाखिल होता हूँ. सहकर्मियों को अनमना सा अभिवादन करता हूँ. लैपटॉप खोलता हूँ, काम की प्लानिंग करता हूँ. साईट की गर्मी में पसीने बहाता हूँ. रात ढले घर लौटता  हूँ. माकन मालिक से पार्किंग के लिए झगड़ता  हूँ. फ़ोन पर गर्ल फ्रेंड की शर्ते सुनता हूँ, माँ की अपेक्षाएं भी. रात को पचास रूपये खर्च कर दो ठंडी रोटी खाता हूँ. कमरे की तपती गर्मी में बदन सीधा करता हूँ. आँखों में सुर्खी सी है, चेहरा तेजहीन, मैं आजकल गुडगाँव में रहता हूँ.

Monday 3 May, 2010

Aansu Aur Paani

"समय कि शिला पर मधुर चित्र कितने,
किसी ने बनाए, किसी ने मिटाए,
किसी ने लिखी आंसुओं की कहानी,
किसी ने पढ़ा सिर्फ दो बूँद पानी."

Ab Main Kavitayen Nahi Likhta

अब मैं कवितायेँ नहीं लिखता
काम करता हूँ.........
सुबह से शाम तक
पत्ते खेलता हूँ
बातें करता हूँ
यहाँ - वहां हर किसी से.

कि किताबों - कॉपियों,
पेड़-पौधों,
संवेदना, विचार,
अनुशासन, नियम,
आचार के लिए 
वक़्त नहीं मिलता.

कि आँखें नहीं देखती अब
चश्मा हटाकर 
धूप तेज लगती है,
मिचमिची,
धूल-धूल,
गंदगी.

कि ये त्याग-तपस्या........
बकवास!
जिन्दगी जीता हूँ-
अल्हड,
अनबन.


कि लैपटॉप में रात ढले तक ढूंढता हूँ-
Hitech !!! 
अब मैं कवितायें नहीं लिखता.



 

Wednesday 28 April, 2010

Tumhaari Hansi

अपने होने और न होने के बीच
जब भी मैं देखता हूँ तुम्हें...........
तब- तब तुम्हारी हंसी पर अपने मौन को भारी पाता हूँ.

जब इस दुनिया में मेरा अस्तित्व तय हो जाएगा
और मैं जीना सीख लूँगा
तुम्हारे बगैर,
तब-तब तुम्हारी हंसी मेरे मौन पर भारी पड़ेगी.

Friday 23 April, 2010

jab tumne meri jindagi men dastak di thi.........

Date: 03-09-07

आज बहुत खुश हूँ. बरसों बाद एक जाने - पहचाने अहसास ने गुदगुदी कर दी है और मैं हँसता-हँसता बेहाल हो गया हूँ. हल्का महसूस कर रहा हूँ ....... और इतना ऊँचा ....... बादलों से भी किंचित ऊपर. Thank God !!! कभी - कभी ख़ुशी से ऐसे ही पागल कर दिया करो मुझे कि उन्मुक्त हो जाऊं  .........  कि सारे बंधन तोड़कर कुछ वक़्त गुजार सकूँ तुम्हारे दरम्यां ......... कि अहसास हो कि दुनिया में सबसे धनी हूँ, सबसे संपन्न ....... कि  जिंदगी की हर लालसा ख़त्म हो जाये कुछ वक़्त के लिए. मेरी जिंदगी को कुछ ऐसे बेशकीमती वक़्त देने के लिए धन्यवाद  !!!!!!!!!

मैं  अक्सर  सपने  देखता  था , लेकिन  कभी  सपने  में  भी  नहीं  सोचा  था  कि  ऐसा  कुछ ......, इतनी  आसानी  से  तुम्हारे  दुर्लभ  शब्द ............,तुम्हारे  उँगलियों  की बेशकीमती  धड़कन  ........., विश्वास  नहीं  होता  है  अब  भी.

विश्वास  नहीं  होता  है  कि तुम  इतनी  दयालु  हो  सकती  हो .........वो  नियम, वो  बंधन, वो  बंदिशे ,...........विश्वास  नहीं  हो  रहा  है  अब  भी ........

काश !!! कि  वैसा  सबकुछ  हो  पाता  जैसा  कि  हम  चाहते  हैं. कभी  - कभी  बहुत  कुछ  वक़्त  के  हाथ  में  छोड़   देना  पड़ता है  और  करना  पड़ता  है  इंतज़ार ...........
"जो  हुआ  अच्छा  हुआ .............
जो  हो  रहा  है  अच्छा  हो  रहा  है ............
और  जो  होगा  वो  भी  अच्छा  ही  होगा ..............."

याद  है  जब  तुम  गाती  थी  तो  हमारी  class कैसे  शांत  हो  जाया  करती थी ..............काफी  दिन  हो  गए  किसी  ने  नहीं  गाया ..."कहीं दूर जब दिन ढल जाये, साँझ की दुल्हन बदन चुराए  .............................."

अपने  बेसुरे  गले  से  गुनगुनाता  रहता  हूँ  आज  भी.

तुम  पहले  कवितायें  लिखा  करती  थी .................कभी -कभी  बहुत  लम्बी ...........अब  न  कोई  गाता  है, न  कविता  लिखता  है  और  न  ही  रंगों  से  बनाता  है  गुलाब  का  फूल ..........जैसे  पूर्व  जन्म  की  बातें   हो  सब.

मैंने  कई  dairy लिख  रखी  है, ढेरों कवितायेँ, सहश्रों  शब्द. तुम्हे  एक -एक  शब्द  दिखाना  चाहता  हूँ.......

मैं  तुम्हें  कभी  याद  नहीं  करता ..............मकर  संक्रांति  के  दिन  भी  नहीं ...........राखी  में  भी  नहीं ...............कभी  नहीं ................hats off you !!!!!!!!!!!!!!!!

जब तुम पास नहीं होते हो

अब हम अक्सर दूर रहते हैं, जिंदगी से उदास शिकायत करते हैंजाने क्यों नवोदय नहीं भूलता कभी, शाम को Ground में जमघट miss करता हूँतुम्हारे साथ के वो पल देखता हूँआज हम रोज घंटों बातें करते हैं, लेकिन तुम्हारी वो ख़ामोशी आज भी सबकुछ कहती रहती हैमैं घण्टों तुम्हें देखता रहता हूँ